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Showing posts from April, 2019

2 मोजुदा चुनावी प्रक्रिया और सही उम्मीदवार की पसंदगी

गलत नीव पर खडी यह मोजुदा व्यवस्था - लोकतंत्र में आप किसी को भी CM और PM बना लो वो भले ही नहेरु, केजरीवाल, मोदी या राहुल हो वो लुंटने वाला ही निकलेगा. मोजुदा तंत्र में पद को सत्ता कहा जाता है और सत्ता किसी की भी सगी नहीं होती. सार्वजनिक संपतिका संचालन करने को पूर्णतः सक्षम व्यक्ति को बिना किसी बहसके लोग स्वयं पसंद कर ले ऐसा होना चाहिए. मतलब की इलेक्शन नहीं पर सिलेक्सन होना चाहिए. कभी ऐसा होता है की एक ही विस्तार में संचालन करने योग्य एक से ज्यादा व्यक्ति रहेते है तो ये लोग साथ में मिलकर वह विस्तारकी संपतिका संचालन करेंगे या फिर अगर कोई और विस्तारमें संचालन करने योग्य कोई व्यक्ति न हो तो इनमे से एक को वहा भेजकर वहा की जिम्मेदारी देनी चाहिये. हरिफाई की जगह समजदारी और सहकार की बात हो.  जनकल्याणका हेतु समाया हो. हमारा अंतिम लक्ष्य तो सर्व के लिए अच्छे मानव जीवनकी रचना करना है उसको ध्यानमें रखते हुए पूरी प्रक्रिया को चलाना चाहिए. मोजुदा चुनाव प्रक्रिया में क्या हो रहा है? नामर्द, नाकाम और अयोग्य व्यक्ति संचालनकी जिम्मेदारी लेने को हरिफाईमें उतरते है. करोडो रुपयेके विज्ञाप...

1 चर्चा की उपयोगिता, लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया:

जब भी कोई नई बात आती है    वो सत्य तो होती है पर हमारी मान्यता से विरुद्ध होती है    तब हमको वह कड़वी लगती है.    बस ऐसा ही कुछ होता है    राजकारण   की     चर्चाओंमें. यह लोकतंत्र या पूरी व्यवस्था गलत नीव पर खड़ी है और यही वजह से कोई भी पक्ष     भ्रष्टाचार   से मुक्त नहीं है, और किसी भी पक्षने सरकारमें आने के बाद बहुत उत्तम    कह शके ऐसे कार्य नहीं किये है. यही वजहसे जब चर्चामे कोई मेरे पसंदीदा पक्षके बारेमें सत्य बात रखता है की जिसमे मेरे पक्षकी कमी दिखाई पड़ती है तो वो में सहन नहीं कर पाता. और उसको लेकर में भावुक होकर उसके बचावमे गलत बहेस करता हु, हास्यास्पद दलीले करता हु. जो सत्य सामने आया है उस सत्य के साथ चलने की हिम्मत बहोत कम लोगोमें होती है. क्यूँ हम इतने निष्पक्ष नहीं हो शकते की हमारी खुदकी मान्यताके विरुद्ध जाकर सत्य को पाने की कोशिश कर शके? सत्य तक पहुचनेकी हिम्मत दिखा शके? फिर उसमे किसीका पक्ष लेने की बात ही नहीं आती. सत्य का पक्ष रखने के लिए जब में मेरे खुद का पक्ष भी नहीं ले रहा...

3. Refuting : If you don't vote, you don't have right to complain afterwards.

मुझे बोला गया कि आप वोट नहीं देते तो आपको बाद में कोई भी पक्ष या राजनीति से जुड़े हुए कोई भी मुद्दे पर टिप्पणी देने का अधिकार नहीं मिलता और बाद में आप सभी योजनाओं का लाभ उठाएंगे.     मेरा जवाब यह है मैं जिस प्रदेश में रहता हूं,  वह पृथ्वी का एक हिस्सा है. यह पृथ्वी पर जितने इंसान रहते हैं, जितने प्राणी रहते हैं, जब कुदरतने इन्हें यहां पर रखा है तो इसका मतलब यह है कि यहां के जो संसाधन है, पृथ्वी की जो कुदरती संपदा है, उस पर सबका अधिकार है. आम के पेड़ पर आम लगता है तो कुदरत मुझे मना नहीं करती कि तुम यह नहीं तोड़ सकते, तो और कोई मुझे मना कैसे कर सकता है? क्या वह कुदरत से बढ़कर है? कोई मानता है कि वह कुदरत से बड़ा है तो जब पृथ्वी में से लावा निकलता है, उसको रोक कर दिखाएं. अगर वह वह कर सकता है तो मैं मान लूंगा कि वह कुदरत से बढ़कर है.  जैसे यह सारी पृथ्वी की कुदरती संपदा की बात की, वही पृथ्वी का हिस्सा, जहां पर अभी मैं रहता हूं, उस जगह को, उस प्रदेशको आप जो भी नाम दे दो चलेगा, पर वह पृथ्वी का ही हिस्सा रहेगा. और यह प्रदेश की जो कुदरती संपदा है वह यहां र...

ચર્ચાઓની ઉપયોગીતા, લોકતંત્ર અને ચૂંટણી પ્રક્રિયા

જ્યારે કોઈ પણ નવી વાત એવી આવે કે જે સત્ય તો હોય પરંતુ આપણી માન્યતાથી વિરુદ્ધ હોય તો આપણને કડવું લાગે છે. આપણને આપણી માન્યતા બદલવા માટે તકલીફ પડે છે. બસ એવું જ કંઈક થાય છે ,   આ રાજકારણની ચર્ચાઓમાં.     આખી વ્યવસ્થા ખોટા પાયા પર ઉભી છે અને તેથી જ   કોઈપણ પક્ષ ભ્રષ્ટાચારથી મુક્ત નથી. અને કોઈપણ પક્ષે સરકાર તરીકે ખૂબ ઉમદા કહી શકાય     તેવાં કાર્યો કર્યા નથી.     એટલે ચર્ચામાં જ્યારે   હવે કોઈ બીજો મારી ગમતા પક્ષ વિશે સત્ય વાત રજૂ કરે જેમાં તે પક્ષની નબળાઈ છતી થતી હોય ત્યારે મને અસહ્ય લાગે.     અને તેને લઈને હું તેના બચાવમાં પોપટ દલીલો કરું છું અને કારણ વગરની ચર્ચા કરું છું.     સત્ય સાથે ચાલવાની હિંમત બહુ થોડા લોકો જ બતાવી રહ્યા છે. આપણે શું એટલા નિષ્પક્ષ ન થઈ શકીએ કે આપણે આપણી પોતાની જ માન્યતાની વિરુદ્ધ જઈને સત્યની ચકાસણી કરી શકીએ ?   સત્ય સુધી પહોંચવાની હિંમત બતાવી શકીએ ?   પછી આમાં કોઇનો પક્ષ લેવા જેવું આવે જ નહિ. સત્યનો પક્ષ રાખવા માટે હું જ્યારે મારો પોતાનો પણ પક્ષ ના લઉ ,   તો પછી મારા સગા સંબંધ...