राष्ट्रवाद की दीवार के उस पार
'वाद' कुछ ऐसी बात है जिसमे हम सिर्फ हमारा ही श्रेष्ठ और दूसरो का हमसे हिन् ऐसा मानते व वर्तते है. ऐसे कितने ही वाद में हम उल्जे हुए है. जैसे की राष्ट्रवाद, प्रदेशवाद, जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद, ईश्वरवाद. ऐसा दरेक वाद संकुचितता है. सबसे बड़ा वाद है राष्ट्रवाद. राष्ट्रवाद कहता है, मेरा देश सबसे महान है, उसको प्रेम करो और उसको समर्पित हो जाओ. प्राथमिक रूप से हमको लगता है की हम सबके हित की बात कर रहे है. पर हम पूरी पृथ्वी के लोगोको नहीं पर सिर्फ हमारे देशकी सीमाके अंदर रहे लोगो को ही ध्यान में ले रहे है. हम दूसरा तर्क ये करते है की हम पूरी दुनिया के लोगो का हित नहीं कर शकते सिर्फ अपने देश के लोगो का ही हित कर शकते है और उनसे जुड़ शकते है. तो वहा तक ही ठीक है. इस तर्कको भी मर्यादा है. हम देशके सवा अबज लोगोमें से कितने लोगोको सही रूपमें मिल शकते है और उनका भला कर शके है ? ज्यादातर हम जिस ग़ाव, नगर व् शहरमें या जिस प्रदेशमें रहते है उसके कुछ लोगोको वास्तविक रूपमें मिल शकते है और उनको अपना बना शकते है, उनका भला कर शकते है. फिर भी हम पूरा भारत देश मेरा है और उसके सभी लोग मेरे भाई बहन ऐ...