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Showing posts from December, 2020

राष्ट्रवाद की दीवार के उस पार

'वाद' कुछ ऐसी बात है जिसमे हम सिर्फ हमारा ही श्रेष्ठ और दूसरो का हमसे हिन् ऐसा मानते व वर्तते है. ऐसे कितने ही वाद में हम उल्जे हुए है. जैसे की राष्ट्रवाद, प्रदेशवाद, जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद, ईश्वरवाद. ऐसा दरेक वाद संकुचितता है. सबसे बड़ा वाद है राष्ट्रवाद. राष्ट्रवाद कहता है, मेरा देश सबसे महान है, उसको प्रेम करो और उसको समर्पित हो जाओ. प्राथमिक रूप से हमको लगता है की हम सबके हित की बात कर रहे है. पर हम पूरी पृथ्वी के लोगोको नहीं पर सिर्फ हमारे देशकी सीमाके अंदर रहे लोगो को ही ध्यान में ले रहे है. हम दूसरा तर्क ये करते है की हम पूरी दुनिया के लोगो का हित नहीं कर शकते सिर्फ अपने देश के लोगो का ही हित कर शकते है और उनसे जुड़ शकते है. तो वहा तक ही ठीक है. इस तर्कको भी मर्यादा है. हम देशके सवा अबज लोगोमें से कितने लोगोको सही रूपमें मिल शकते है और उनका भला कर शके है ? ज्यादातर हम जिस ग़ाव, नगर व् शहरमें या जिस प्रदेशमें रहते है उसके कुछ लोगोको वास्तविक रूपमें मिल शकते है और उनको अपना बना शकते है, उनका भला कर शकते है. फिर भी हम पूरा भारत देश मेरा है और उसके सभी लोग मेरे भाई बहन ऐ

Beyond the wall of Nationalism

'Ism' is a thing in which we believe and behave as ours is the best and others are inferior. We are stuck in many such issues like nationalism, regionalism, racism, languageism, religionism, godism. Each such issue is a narrow mindedness. The biggest issue is nationalism. My country is the best in nationalism, love and devote to it. At primary level it seems that we talk about the interests of all the people of the world in nationalism, but in reality we are talking about the interests of the people of the inner circle of our country instead of the whole of the world's interest. We argue secondly that we can’t do good to the people of the whole world. We can do good for only people of our country or join with them, so to think on that extent is right. There is a limit to this argument. Can we really do good for more than one billion people of this country, or can we get them? We can only do good to some people living in our village, town, city or our region that we ca

वसुधैव कुटुम्बकम पत्रिका + Audio and Video Links

  प्रेम आधारित समाज  रचना - Gift Economy वसुधैव कुटुम्बकम ( विश्व एक कुटुंब है ) वसुधैव कुटुम्बकम इस वाक्य को काफी लोग इस्तेमाल करते है पर कितने लोग सही में इसके मूल अर्थ को समजते है? कुछ लोग तो बिना समजे इस पर लम्बा भाषण भी देते है. वसुधैव कुटुम्बकम जो की मूल संस्कृत वाक्य है . ऋषि मुनिओने १००० साल से ज्यादा समय पहले इस विचार को या इस भावना को प्रस्तुत  किया था. यह भावना/विचार के अनुरूप लोग जिए और उसके आधारित समाज रचना बने तो ही इस जगतमे कायमी तौर पे सुख बना रहे गा .   पूरा विश्व एक कुटुंब की तरह कैसे जिए यह समजने के लिए जरुरी बातों को एक आदर्श कुटुंब की व्यवस्था की मदद से समजते है.     १. कुटुंब मे हर कोई अपना होता है : इस विश्वमे हम हमारे छोटे कुटुंब को छोड़कर किसीको भी अपना नहीं मानते. अपने कुटुंब और समाज की और से सीधा या अप्रत्यक्ष रूप से हमें दूसरो को अपने नहीं मानने का सिखाया जाता है. यह मेरा, वह तेरा ऐसे स्पष्ट भेद दिखाए जाते है. ऐसे ही दुसरे अनेक प्रकार के भेद हमको समजाए जाते है, जैसे की, जातिवाद, ईश्वरवाद, धर्मवाद, प्रदेशवाद, राष्ट्रवाद वगेरह. में सिख हु, व

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